आतंकवाद एक ऐसी वैश्विक समस्या
आतंकवाद आज आतंकवाद एक ऐसी वैश्विक समस्या का रूप धारण कर चुका है, जिसकी आग में सारा विश्व जल रहा है। आज कोई भी देश यह दावा नहीं कर सकता कि उसकी सुरक्षा व्यवस्था में कोई कमी नहीं है और वह आतंकवाद से पूरी तरह मुक्त है। सच तो यह है कि आज यह कोई नहीं जानता कि आतंकवाद का अगला निशाना कौन और किस रूप में होगा ? हिंसा के द्वारा जनमानस में भय या आतंक पैदा कर अपने उद्देश्यों को पूरा करना ही आतंकवाद है यह उद्देश्य राजनीतिक, धार्मिक या आर्थिक ही नहीं, सामाजिक या अन्य किसी प्रकार का भी हो सकता है। वैसे तो आतंकवाद के कई प्रकार हैं, किन्तु इनमें से तीन ऐसे हैं, जिनसे दुनिया त्रस्त है-राजनीतिक आतंकवाद, धार्मिक कट्टरता एवं गैर-राजनीतिक या सामाजिक आतंकवाद बोलका में लिट्टे समर्थकों एवं अफगानिस्तान में तालिबानी संगठनों की गतिविधियाँ राजनीतिक आतंकवाद के उदाहरण हैं। जम्मू-कश्मीर एवं असम में अलगावादी गुटों द्वारा किए गए आपराधिक कृत्य भी राजनैतिक केही उदाहरण है। अल-कायदा, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्म्मद जैसे संगठन धार्मिक कट्टरता की भावना से आपराधिक कृत्यों को अंजाम देते हैं। अतः ऐसे आतंकवाद को धार्मिक कट्टरता की श्रेणी में रखा जाता है। अपनी सामाजिक स्थिति या अन्य कारणों से उत्पन्न सामाजिक क्रान्तिकारी विद्रोह को गैर-राजनीतिक आतंकवाद की श्रेणी में रखा जाता है। भारत में नक्सलवाद गैर-राजनितिक आतंकवाद का उदाहरण है। आतंकवादी हमेशा आतंक फैलाने के नए-नए तरीके आजमाते रहते हैं। भीड़ भरे स्थानों, रेल-बसों इत्यादि में बम विस्फोट करना, रेलवे दुर्घटना करवाने के लिए रेलवे लाइनों की पटरियों उखाड़ देना, वायुयानों का अपहरण कर लेना, निर्दोष लोगों या राजनीतिज्ञों को बन्दी बना लेना, बैंक डकैतियाँ करना इत्यादि कुछ ऐसे आतंकवादी गतिविधियाँ है, जिनसे पूरा विश्व पिछले कुछ दशकों से त्रस्त है। आज लगभग पूरा विश्व आतंकवाद की चपेट में है और किसी न किसी तर इससे पीड़ित है। पिछले एक दशक में पूरे विश्व में आतंकवादी घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। 11 सितम्बर, 2001 को अमेरिका के न्यूयॉर्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर और 26 नवम्बर, 2008 को मुम्बई में हुआ आतंकी हमला आतंकवाद के बढ़ते प्रभाव को रेखांकित करता है। F दिसम्बर, 2014 में ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर के एक कैम्पस में ग्राहकों को बन्दी बनाना और पाकिस्तान के पेशावर जिले में स्थित एक आर्मी स्कूल में लगभग 150 मासूम बच्चों को निर्ममतापूर्वक मौत के घाट उतारना। जनवरी, 2015 में फ्रांस में 'शाली अब्दो' के कार्यालय पर हमला कर पत्रकारों की हत्या करना व नाइजीरिया में व्यापक पैमाने पर कत्लेआम करना तथा सोशल मीडिया और इण्टरनेट के द्वारा भारत जैसे देशों में आईएस द्वारा अपने नेटवर्क का विस्तार करना, भारत के 'उरी सेक्टर' में हमला (2016), फ्रांस के नीस में आतंकवादी हमला 2016)। इसके अतिरिक्त वर्ष 2017 में क्रमश: काबुल (मार्च में) अफगानिस्तान के बाल्ख में (अप्रैल में), लन्दन में (मार्च में) सीरिया व मिस्र (नवम्बर में) आदि ऐसी भयानक वारदातें हैं, जो आतंकवाद के घिनौने रूप को प्रकट करती हुई। सबसे अधिक चिन्ता का विषय यह है कि बीते समय में जिन ताकतों या देशों ने अपने स्वार्थ के कारण किसी-न-किसी रूप में आतंकवाद को प्रोत्साहन दिया, आज वे भी आतंकवाद से लड़ने में कमजोर पड़ गए हैं अर्थात् आतंकवादी संगठनों की ताकत लगातार बढ़ती जा रही है और वे एक के बाद एक आतंकी घटनाओं द्वारा इसका परिचय दे रहे हैं। वैसे तो आज लगभग पूरा विश्व ही आतंकवाद की चपेट में है, किन्तु भारत दुनियाभर में आतंकवाद से सर्वाधिक त्रस्त देशों में से एक है। इसका प्रमुख कारण भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान है। भारत और पाकिस्तान में आरम्भ से ही जम्मू-कश्मीर राज्य विवाद का मुद्दा रहा है और दोनों ही देश इस पर अपना अधिकार करना चाहते है। पाकिस्तान, कश्मीर को हथियाने के लिए अब तक तीन बड़े युद्ध कर चुका है और आए दिन सीमा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन करता रहता है। लेकिन अभी तक उसके हाथ असफलता ही लगी है, इसलिए उसने भारत को आन्तरिक रूप से नुकसान पहुँचाने के लिए आतंकवाद का सहारा लेना शुरू कर दिया। इसका नतीजा यह निकला है कि यदा-कदा भारत आतंकी हमलों का निशाना बनता रहता है। 12 मार्च, 1993 को मुम्बई में हुए श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोट, 13 दिसम्बर, 2001 - को संसद भवन पर हुआ हमला, 7 मार्च, 2006 को हुआ वाराणसी बम धमाका, 26 जुलाई -2008 को अहमदाबाद में हुआ बम विस्फोट, 26 नवम्बर, 2008 को मुम्बई के ताज होटल पर हमला, पठानकोट हमला (2016), अमरनाथ तीर्थ यात्रियों पर हमला (2017) आदि ऐसी घटनाएं हैं, जो भारत को आतंकवाद पीड़ित देश घोषित करती हैं। इन बड़ी घटनाओं के अतिरिक्त, आतंकवादी भारत में अनेक छोटी-मोटी भारत को आतंकवाद पीड़ित देश घोषित करती है। इन बड़ी घटनाओं के अतिरिक्त, आतंकवादी भारत में अनेक छोटी मोटी घटनाओं को अंजाम दे चुके हैं। भारत में नक्सलवाद भी अब आतंकवाद का रूप ले चुका है। पहले नक्सलवाद का उद्देश्य अपने वास्तविक हक की लड़ाई थी, किन्तु अब यह बहुत ही हिंसक विद्रोह के रूप में देश के लिए एक गम्भीर समस्या एवं चुनौती बन चुका है। प्रारम्भ में यह विद्रोह पश्चिम बंगाल तक सीमित था, किन्तु धीरे-धीरे यह ओडिशा, बिहार, झारखण्ड, आन्ध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं छतीसगढ़ के क्षेत्रों में भी फैल गया है। वैसे तो आतंकवाद के प्रमुख कारण राजनीतिक स्वार्थ, सत्ता एवं धार्मिक कट्टरता है, किन्तु नक्सलवाद जैसी विद्रोही गतिविधियों के समाजिक कारण भी हैं, जिनमें बेरोजगारी एवं गरीबी प्रमुख विश्व के अधिकतर आतंकवादी संगठन युवाओं की गरीबी एवं बेरोजगारी का लाभ उठाकर एवं गरीबी प्रमुख हैं। विश्व के अधिकतर आतंकवादी संगठन युवाओं की गरीबी बेरोजगारी का लाभ उठाकर ही उन्हें आतंकवाद के अन्धे कुएं में कूदने के लिए उकसाने में सफल रहते हैं। आतंकवाद के कुपरिणामस्वरूप अब तक दुनिया कई राजनयिकों सहित मासूमों एवं निर्दोष लोगों की जाने जा चुकी हैं तथा लोखों लोग विकलांग एवं अनाथ बन चुके हैं। आतंकवाद के सन्दर्भ में सविधिक बुरी बात यह है कि कोई नहीं जानता कि आतंकवादियों का अगला निशाना कौन होगा? इसलिए आतंकवाद ने आज लोगों के जीवन को असुरक्षित बना दिया है। यह मानव-जाति के लिए कलंक बन चुका है। इस प्रकार आतंकवाद जो वैश्विक समस्या हो गई है, इसके लिए वैश्विक प्रयास की जरूरत है अतः इस दिशा में संयुक्त प्रयासों के बावजूद विश्व के अन्य संगठन भी प्रयास कर रहे हैं, जैसे चीन में 9वीं विश्व सम्मेलन (2017) में आतंकवाद का मुद्दा महत्वपूर्ण रहा है। इसी तरह कतर ने अपने कानून में संशोधन का आदेश जारी करते हुए कहा है कि वैसे व्यक्ति एवं संस्थाओं की सूची तैयार की जाएगी, जो आतंकी संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं। ऐसे प्रयास विश्व के अन्य देशों को भी करने की आवश्यकता है। इसके लिए अन्य अपाय के रूप में पिछड़े इलाके के युवक-युवतियों को रोजगार प्रदान कराने जैसे कदम अत्याधिक कारगर साबित होंगे। भारत ने कुछ इलाकों में लोग अपने हक के लिए भी नक्सलवाद का सहारा ले रहे हैं. ऐसे इलाकों की पहचान कर उन्हें उनका अधिकार प्रदान करना अधिक उचित होगा। हालांकि भारत सरकार ने इसके उन्मूलन के लिए समय-समय पर पहल की है जैसे 1987 में टाडा कानून बनाया, वर्ष 2002 में पोटा कानून बनाया, वर्ष 2008 में राष्ट्रीय अन्वेषण एजेन्सी का गठन किया आदि। इसके अतिरिक्त 'रोशनी' जैसे कार्यक्रम भी चलाए गए हैं तथा ऐसी गतिविधियों में संलग्न लोगों के लिए स्वरोजगार सम्बन्धी उपाय भी किए गए हैं। जिससे देश के कुछ राज्यों में इससे नक्सलवादी लोग लाभान्वित भी हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की समस्या के समाधान के लिए भारत सरकार को कड़े कदम उठाने होंगे एवं पाकिस्तानी घुसपैठ को रोकते हुए इस राज्य पर अपनी प्रशासनिक पकड़ मजबूत करनी होगी तथा आवश्यकता पड़ने पर पाकिस्तान से द्विपक्षीय वार्ता के अतिरिक्त उसके प्रति कठोर कदम उठाने के लिए भी तैयार रहना होगा। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता कि आतंकवाद की समस्या के समाधान के लिए पूरे विश्व को मिलाकर एक व्यापक रणनीति बनाना ही वर्तमान समय की माँग है। आतंकवाद आज वैश्विक समस्या का रूप ले चुका है, इसलिए इसका सम्पूर्ण समाधान अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एवं प्रयासों से ही सम्भव है। इसमें संयुक्त राष्ट्र संघ, इन्टरपोल एवं अन्राष्ट्रीय न्यायालय को भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।