वामपंथी उग्रवाद
हिंसा द्वारा बदलाव की विचारधारा से प्रेरित वामपंथी उग्रवाद की शुरुआत पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग जिले के 3 इलाकों नक्सलवाड़ी खोरीबाड़ी फांसीदेवा में मार्च 1967 में जमींदारों एवं यहां व्याप्त सामाजिक आर्थिक ढांचे में प्रशासन के विरुद्ध किसान विद्रोह के रूप में हुई थी मूलत: किसान विद्रोह के रूप में शुरू होने वाले इस संघर्ष में जमीदारों , साहूकारों , एवं भ्रष्ट शासन व्यवस्था, से उपजे असंतोष के फलस्वरूप इस में वृहद स्तर पर भूमिहीन कृषक शामिल हुए एवं उन्होंने गोरिल्ला पद्धति को अपनाया।
शोषण और भ्रष्टाचार में लिप्त व्यवस्था के विरोध स्वरूप उत्पन्न होने वाला यह संघर्ष कालांतर में एक व्यापक हिंसक जन संघर्ष का रूप धारण कर लिया।
नक्सलवाड़ी क्षेत्र में उत्पन्न होने के कारण यह नक्सलवाद के रूप में बंगाल से लेकर लगभग 10 राज्यों के 106 जिलों में फैलकर इसने एक नक्सली 'लाल गलियारा' बना लिया। इस वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र को सुसंबंध क्रांतिकारी क्षेत्र भी कहा जाता है ।
इन राज्यों में शामिल है बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ । इनके लगभग 35 प्रभावित जिले माने जाते हैं । बाहरी देशों से मिलने वाले सहयोग एवं प्रशासन की संवेदनहीनता ने इसे एक बड़ी समस्या का रूप दे दिया है ।
हाल ही में माओवादियों ने ऐसे नए क्षेत्रों को अपने प्रभाव में लाने का प्रयास तेज किए हैं, जहां उनकी उपस्थिति नहीं है जैसे उत्तराखंड, तमिलनाडु एवं कर्नाटक के कुछ क्षेत्र । एक सूचना के अनुसार नक्सलवादी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश के जंगलों में नया नक्सली जोन बनाने में जुटे हुए हैं । यह जॉन मध्यप्रदेश के बालाघाट, छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव और महाराष्ट्र के गोदिया में बनाया जा रहा है ।
हालांकि उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा शुरू किए गए बहुआयामी उपायों के कारण पिछले कुछ वर्षों के दौरान वामपंथी उग्रवाद हिंसा में कमी आई है। गौरतलब है कि वर्ष 2006 में माओवाद की पहचान की गई थी तथा उन्हें हिंसा के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।